खतरा टल गया 🛑🔘🛑🔘🛑🔘🛑🔘 धरती के बगल से गुजर गया विशालकाय एस्टेरॉयड, 11 साल बाद फिर लौटेगा अंतरिक्ष से आ रहा एस्टेरॉयड


1998 OR2 धरती के बगल से गुजर गया. इससे पृथ्वी को कोई खतरा नहीं था, यह धरती के करीब 63 लाख किलोमीटर दूर से गुजरा है. इसके पहले ये एस्टोरॉयड 12 मार्च 2009 को 2.68 करोड़ किलोमीटर की दूरी से गुजरा था. अब धरती के लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. क्योंकि इसके गुजरने के साथ ही दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने चैन की सांस ली है. हांलाकि, इस पर अध्ययन जारी रहेगा.

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पहले भी इस बात की उम्‍मीद जताई गई थी कि यह बिना पृथ्‍वी से टकराए निकल जाएगा। अब इस तरह का अगला संयोग 2079 में होगा। प्‍यूर्टो रिको के ऑब्‍जर्वेटरी में 8 अप्रैल से इस उल्‍कापिंड की मॉनिटरिंग की जा रही है, इसके अनुसार इसकी रफ्तार 19,461 मील (31,320 km/h) प्रति घंटे की थी।

1998 में हुई थी इसकी खोज

1998 OR2 नामक इस उल्‍कापिंड की खोज एस्‍टेरॉयड ट्रैकिंग प्रोग्राम के जरिए की गई थी। चपटी कक्षा वाले इस उल्‍कापिंड की खोज 1998 में हो गई थी। तभी से इस पर शोध जारी है। सूर्य की परिक्रमा करने में इसे 1344 दिन का समय लग जाता है। नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे ने पहले ही बता दिया था कि इस आकाशीय घटना से डरने की कोई बात नहीं है क्‍योंकि यह उल्‍कापिंड पृथ्‍वी से 60 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा।


अब 2197 में धरती के पास जाएगा उल्‍कापिंड

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब वर्ष 2197 में यह उल्‍कापिंड फिर से धरती के करीब से गुजरेगा उस वक्‍त फासला कम हो जाएगा। बता दें कि ऐसे उल्‍कापिंड अक्सर धरती के करीब से होकर गुजरते हैं। सौर मंडल में लाखों करोड़ों की संख्या में उल्‍कापिंड घूम रहे हैं जो एस्‍टेरॉयड बेल्‍ट के नाम से जाना जाता है। इनमें से कुछ बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण के कारण अपने ऑर्बिट से बाहर आ जाते हैं। वहीं इनमें से कुछ धरती के नजदीक भी पहुंच जाते है और यही ‘नियर अर्थ ऑब्‍जेक्‍ट’ कहलाता है।

खतरनाक वस्‍तु के तौर पर वर्गीकरण

संभावित खतरनाक वस्‍तु के तौर पर वर्गीकृत इस उल्कापिंड का आकार 140 मीटर से बड़ा है। हालांकि, इसके बाद भी वैज्ञानिकों ने इस पर नजर रखना जारी रखा है ताकि यह पता लगाया जा सकते कि पृथ्वी के नजदीक से निकलने के बाद क्या होता है. ऑब्जर्वेटरी के एक शोध वैज्ञानिक फ्लेवियन वेंडीटी के अनुसार, इस उल्‍कापिंड के आगे के लोकेशन के बारे में रडार मैप से जानकारी मिलेगी

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